जो झलक रही है इस चेहरे से वो खामौशी कुछ और है आती नहीं लबों तक जो वो हकीक़त कुछ और है बनती बिगडती रहे चाहे वक़्त के आगोश में मगर जो हर वक़्त शह चाहती है पर्दे की वो मेरी तस्वीर कुछ और है...