रूबरू

गर राहगीरों से है रास्तों की रोनक तो
फिर आँखों ने हर नज़र पे विराना दिखाया क्यों
क्यों मुकद्दर ने हटा दिए बहारों के निशां
क्यों हर कदम पर मजबूरियां कर देती हैं मजबूर
कहती हैं, बस बहुत हुआ, बहुत हुआ,
हट जा पीछे, मत जा आगे,
वैसे भी कुछ मिल पाने की उम्मीद है बाकि कहाँ!!!
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